रविवार, 31 मई 2020

5 june कबीर प्रकट दिवस


5 june कबीर प्रकट दिवस
कबीर जी को मारने के लिए उन्हें खूनी हाथी के आगे बांध कर डाला गया।
लेकिन अविनाशी कबीर जी ने हाथी को शेर रूप दिखा दिया। जिससे हाथी भयभीत होकर भाग गया।
सबने कबीर जी की जय जयकार की




शेखतकी ने जुल्म गुजारे, बावन करी बदमाशी,
खूनी हाथी के आगे‌ डालै, बांध जूड अविनाशी,
हाथी डर से भाग जासी, दुनिया गुण गाती है।
शेखतकी ने अविनाशी को मारने के लिए खूनी हाथी के आगे डाला। हाथी कबीर भगवान के पास जाते ही डर कर भाग गया। तब लोगों ने कबीर साहेब की जय-जय कार की। कबीर भगवान अविनाशी

शनिवार, 30 मई 2020

कबीर साहेब जी की लीला


मगहर में कबीर साहेब ने की अद्भुत लीला!
मगहर में कबीर साहेब के सशरीर सतलोक जाने के
मगहर में कबीर साहेब ने की अद्भुत लीला!
मगहर में कबीर साहेब के सशरीर सतलोक जाने के बाद उनके हिन्दू और मुस्लिम शिष्यों के बीच विवाद हो गया। मगहर के राजा बिजली खाँ पठान और बनारस के राजा बीर सिंह बघेल के बीच कबीर साहेब के अंतिम संस्कार को लेकर बहुत मतभेद हुआ। लेकिन कबीर साहेब के जाने के बाद चादर के नीचे उनके शरीर के बदले केवल फूल मिले। उसके बाद दोनों धर्म के लोगों ने आधे आधे फूल बाँट लिए

शुक्रवार, 29 मई 2020

5 june कबीर प्रकट दिवस


5 june कबीर प्रकट दिवस
कबीर परमात्मा चारों युगों में आते हैं
यजुर्वेद के अध्याय नं. 29 के श्लोक नं. 25 (संत रामपाल जी महाराज द्वारा भाषा-भाष्य):-
जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होता है उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कबीर प्रभु ही आता है



कबीर परमेश्वर चारों युगों में अपने सत्य ज्ञान का प्रचार करने आते हैं।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।

मंगलवार, 19 मई 2020

बेरोजगारी

उस स्थिति को कह्ते है जिसमे यद्यपि श्रमिक काम करने के लिये उत्सुक है और उसमें काम करने की आवश्यक योग्यता भी है तथापि उसे काम प्राप्त नही होता। वह पूरा समय बेकार रहता है। वह पूरी तरह से परिवार के कमाने वाले सदस्यों पर आश्रित होता है। ऐसी बेरोजगारी प्राय: कृषि-श्रमिको, शिक्षित व्यक्तियों तथा उन लोगों में पायी जाती है। जो गावों से शहरी हिस्सों में काम की तलाश में आते हैं पर उन को कोई काम नही मिलता। यह बेरोजगारी का नग्न रूप है।





मौसमी बेरोजगारी इसका अर्थ एक व्यक्ति को वर्ष के केवल मौसमी महीनो में काम प्राप्त होता है। भारत में कृषि क्षेत्र में यह आम बात है। इधर बुआई तथा कटाई के मौसमों में अधिक लोगों को काम मिल जाता है किन्तु शेष वर्ष वे बेकार रहते हैं। एक अनुमान के अनुसार, यदि कोई किसान वर्ष मैं केवल एक ही फसल की बुआई करता है तो वह कुछ महिने तक बेकार रहता है। इस स्थिति को मौसमी बेरोजगारी माना जाता है।





बुधवार, 13 मई 2020

कन्या भ्रूण हत्या

कन्या भ्रूण हत्या आमतौर पर मानवता और विशेष रूप से समूची स्त्री जाति के विरुद्ध सबसे जघन्य अपराध है। बेटे की इच्छा  परिवार नियोजन के छोटे परिवार की संकल्पना के साथ जुडती है और दहेज़ की प्रथा ने ऐसी स्थिति को जन्म दिया है जहाँ बेटी का जन्म किसी भी कीमत पर रोका जाता है। इसलिए समाज के अगुआ लोग माँ के गर्भ में ही कन्या की हत्या करने का सबसे गंभीर अपराध करते हैं। इस तरह के अनाचार ने मानवाधिकार, वैज्ञानिक तकनीक के उपयोग और दुरुपयोग की नैतिकता और लैंगिक भेदभाव के मुद्दों को जन्म दिया है।गर्भ से लिंग परीक्षण जाँच के बाद बालिका शिशु को हटाना कन्या भ्रूण हत्या है। केवल पहले लड़का पाने की परिवार में बुजुर्ग सदस्यों की इच्छाओं को पूरा करने के लिये जन्म से पहले बालिका शिशु को गर्भ में ही मार दिया जाता है। ये सभी प्रक्रिया पारिवारिक दबाव खासतौर से पति और ससुराल पक्ष के लोगों के द्वारा की जाती है। गर्भपात कराने के पीछे सामान्य कारण अनियोजित गर्भ है जबकि कन्या भ्रूण हत्या परिवार द्वारा की जाती है। भारतीय समाज में अनचाहे रुप से पैदा हुई लड़कियों को मारने की प्रथा सदियों से है।लोगों का मानना है कि लड़के परिवार के वंश को जारी रखते हैं जबकि वो ये बेहद आसान सी बात नहीं समझते कि दुनिया में लड़कियाँ ही शिशु को जन्म दे सकती हैं, लड़के नहीं।



कन्या भ्रूण हत्या आमतौर पर मानवता और विशेष रूप से समूची स्त्री जाति के विरुद्ध सबसे जघन्य अपराध है। बेटे की इच्छा  परिवार नियोजन के छोटे परिवार की संकल्पना के साथ जुडती है और दहेज़ की प्रथा ने ऐसी स्थिति को जन्म दिया है जहाँ बेटी का जन्म किसी भी कीमत पर रोका जाता है। इसलिए समाज के अगुआ लोग माँ के गर्भ में ही कन्या की हत्या करने का सबसे गंभीर अपराध करते हैं। इस तरह के अनाचार ने मानवाधिकार, वैज्ञानिक तकनीक के उपयोग और दुरुपयोग की नैतिकता और लैंगिक भेदभाव के मुद्दों को जन्म दिया है।




गर्भ से लिंग परीक्षण जाँच के बाद बालिका शिशु को हटाना कन्या भ्रूण हत्या है। केवल पहले लड़का पाने की परिवार में बुजुर्ग सदस्यों की इच्छाओं को पूरा करने के लिये जन्म से पहले बालिका शिशु को गर्भ में ही मार दिया जाता है। ये सभी प्रक्रिया पारिवारिक दबाव खासतौर से पति और ससुराल पक्ष के लोगों के द्वारा की जाती है। गर्भपात कराने के पीछे सामान्य कारण अनियोजित गर्भ है जबकि कन्या भ्रूण हत्या परिवार द्वारा की जाती है। भारतीय समाज में अनचाहे रुप से पैदा हुई लड़कियों को मारने की प्रथा सदियों से है।

लोगों का मानना है कि लड़के परिवार के वंश को जारी रखते हैं जबकि वो ये बेहद आसान सी बात नहीं समझते कि दुनिया में लड़कियाँ ही शिशु को जन्म दे सकती हैं, लड़के नहीं।

कन्या भ्रूण हत्या का कारण

कुछ सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक नीतियों के कारण पुराने समय से किया जा रहा कन्या भ्रूण हत्या एक अनैतिक कार्य है। भारतीय समाज में कन्या भ्रूण हत्या के निम्न कारण हैं-

कन्या भ्रूण हत्या की मुख्य वजह बालिका शिशु पर बालक शिशु की प्राथमिकता है क्योंकि पुत्र आय का मुख्य स्त्रोत होता है जबकि लड़कियां केवल उपभोक्ता के रुप में होती हैं। समाज में ये गलतफहमी है कि लड़के अपने अभिवावक की सेवा करते हैं जबकि लड़कियाँ पराया धन होती है।

दहेज़ व्यवस्था की पुरानी प्रथा भारत में अभिवावकों के सामने एक बड़ी चुनौती है जो लड़कियां पैदा होने से बचने का मुख्य कारण है।

  • पुरुषवादी भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति निम्न है।
  • अभिवावक मानते हैं कि पुत्र समाज में उनके नाम को आगे बढ़ायेंगे जबकि लड़कियां केवल घर संभालने के लिये होती हैं।
  • गैर-कानूनी लिंग परीक्षण और बालिका शिशु की समाप्ति के लिये भारत में दूसरा बड़ा कारण गर्भपात की कानूनी मान्यता है।
  • तकनीकी उन्नति ने भी कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा दिया है।

मंगलवार, 12 मई 2020

बेरोजगारी

राजस्थान बेरोजगारी 2020 के लिए पात्रता
इस योजना में आवेदक को 12 पास होना चाहिए और उसे साथ-साथ उसके पास कोई ग्रेजुएशन या पोस्टग्रेडुएशन की डिग्री होनी चाहिए। जिस भी युवा के पास नौकरी नहीं है वो इस योजना में आवेदन कर सकते है । आवेदन की पारिवारिक वार्षिक आय कुल मिलाकर 3 लाख से कम होनी चाहिए।


कुछ लोग पढाई पूरी करते हैं लेकीन नौकरी नहीं मिलती है और कुछ लोग पढाई कम करके रिश्वत देकर नौकरी ले लेते गरीब बच्चे मेहनत करते है फीर भी नौकरी नहीं मिलती माता पिता खेत काम करके घर खर्चा भी चलाते है और बच्चों को भी पढाते है 

गुरुवार, 7 मई 2020

मास खाना अल्लाह का आदेश नहीं है


एक तरफ तो आप भक्ति करते हो, और दूसरी तरफ आप बेजुबान निर्दोष जानवरों की हत्या कर उनका मांस खाते हो। 


सभी जीव परमात्मा की प्यारी आत्मा है, तो फिर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति कैसे होगी?देखें साधना TV चैनल प्रतिदिन रात्रि 7:30 से

नशा करता है सर्वनाश

शराब मानव जीवन बर्बाद करती है। इस बारे में परमात्मा कबीर साहेब जी कहते हैं-
भांग तम्बाकू छोतरा, आफू और शराब
गरीबदास कौन करे बंदगी, ये तो करें खराब।
शराब भक्ति का नाश करती है। इसे त्यागने में ही भलाई है

देखें साधना टीवी चैनल प्रतिदिन 7:30 से 8:30 शाम   

बुधवार, 6 मई 2020

काशी मै कबीर जी कीया भंठारा

           ‘‘काशी में भोजन-भण्डारा करना’’
शेखतकी सब मुसलमानों का मुख्य पीर (गुरू) था जो परमात्मा कबीर जी से पहलेसे ही ईर्ष्या करता था। सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजियों व शेखतकी ने मजलिस(डममजपदह) करके षड़यंत्रा के तहत योजना बनाई कि कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्रा भेज दो कि कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। उनका पूरा पता है कबीर पुत्रानूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। कबीर जी तीन दिन का धर्मभोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले कोएक दोहर (जो उस समय का सबसे कीमती कम्बल के स्थान पर माना जाता था), एकमोहर (10 ग्राम स्वर्ण से बनी गोलाकार की मोहर) दक्षिणा में देगें। प्रतिदिन जो जितनी बारभी भोजन करेगा, कबीर उसको उतनी बार ही दोहर तथा मोहर दान करेगा। भोजन मेंलड्डू, जलेबी, हलवा, खीर, दही बड़े, माल पूडे़, रसगुल्ले आदि-2 सब मिष्ठान खाने कोमिलेंगे। सुखा सीधा (आटा, चावल, दाल आदि सूखे जो बिना पकाए हुए, घी-बूरा) भी दियाजाएगा। एक पत्रा शेखतकी ने अपने नाम तथा दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी के नामभी भिजवाया। निश्चित दिन से पहले वाली रात्रि को ही साधु-संत भक्त एकत्रित होने लगे।अगले दिन भण्डारा (लंगर) प्रारम्भ होना था। परमेश्वर कबीर जी को संत रविदास दास जीने बताया कि आपके नाम के पत्रा लेकर लगभग 18 लाख साधु-संत व भक्त काशी शहर मेंआए हैं। भण्डारा खाने के लिए आमंत्रित हैं। कबीर जी अब तो अपने को काशी त्यागकरकहीं और जाना पड़ेगा। कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे, बोलेरविदास जी झोंपड़ी के अंदर बैठ जा, सांकल लगा ले। अपने आप झख मारकर चलेजाएंगे। हम बाहर निकलेंगे ही नहीं। परमेश्वर कबीर जी अन्य वेश में अपनी राजधानीसत्यलोक में पहुँचे। वहाँ से नौ लाख बैलों के ऊपर गधों जैसा बौरा (थैला) रखकर उनमेंपका-पकाया सर्व सामान भरकर तथा सूखा सामान (चावल, आटा, खाण्ड, बूरा, दाल, घीआदि) भरकर पृथ्वी पर उतरे। सत्यलोक से ही सेवादार आए। परमेश्वर कबीर जी ने स्वयंबनजारे का रूप बनाया और अपना नाम केशव बताया। दिल्ली के सम्राट सिकंदर तथाउसका धार्मिक पीर शेखतकी भी आया। काशी में भोजन-भण्डारा चल रहा था। सबको प्रत्येकभोजन के पश्चात् एक दोहर तथा एक मोहर {10 ग्राम सोना(ळवसक)} दक्षिणा दी जा रहीथी। कई बेईमान साधक तो दिन में 
चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहरले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।यह सब देखकर शेखतकी ने तो रोने जैसी शक्ल बना ली और जाँच (म्दुनपतल)करने लगा। सिकंदर लोधी राजा के साथ उस टैंट में गया जिसमें केशव नाम से स्वयं कबीरजी वेश बदलकर बनजारे (उस समय के व्यापारियों को बनजारे कहते थे) के रूप में बैठेथे। सिकंदर लोधी राजा ने पूछा आप कौन हैं? क्या नाम है? आप जी का कबीर जी से क्यासंबंध है? केशव रूप में बैठे परमात्मा जी ने कहा कि मेरा नाम केशव है, मैं बनजारा हूँ।कबीर जी मेरे पगड़ी बदल मित्रा हैं। मेरे पास उनका पत्रा गया था कि एक छोटा-सा भण्डारायानि लंगर करना है, कुछ सामान लेते आइएगा। उनके आदेश का पालन करते हुए सेवकहाजिर है। भण्डारा चल रहा है। शेखतकी तो कलेजा पकड़कर जमीन पर बैठ गया जब यहसुना कि एक छोटा-सा भण्डारा करना है जहाँ पर 18 लाख व्यक्ति भोजन करने आए हैं।प्रत्येक को दोहर तथा मोहर और आटा, दाल, चावल, घी, खाण्ड भी सूखा सीधा रूप में दिएजा रहे हैं। इसको छोटा-सा भण्डारा कह रहे हैं। परंतु ईर्ष्या की अग्नि में जलता हुआ विश्राम 
गृह में चला गया जहाँ पर राजा ठहरा हुआ था। सिकंदर लोधी ने केशव से पूछा कबीर जीक्यों नहीं आए? केशव ने उत्तर दिया कि उनका गुलाम जो बैठा है, उनको तकलीफ उठानेकी क्या आवश्यकता? जब इच्छा होगी, आ जाएंगे। यह भण्डारा तो तीन दिन चलना है।सिकंदर लोधी हाथी पर बैठकर अंगरक्षकों के साथ कबीर जी की झोंपड़ी पर गए। वहाँसे उनको तथा रविदास जी को साथ लेकर भण्डारा स्थल पर आए। सबसे कबीर सेठ कापरिचय कराया तथा केशव रूप में स्वयं डबल रोल करके उपस्थित संतों-भक्तों कोप्रश्न-उत्तर करके सत्संग सुनाया जो 24 घण्टे तक चला। कई लाख सन्तों ने अपनी गलतभक्ति त्यागकर कबीर जी से दीक्षा ली, अपना कल्याण कराया। भण्डारे के समापन के बादजब बचा हुआ सब सामान तथा टैंट बैलों पर लादकर चलने लगे, उस समय सिकंदर लोधीराजा तथा शेखतकी, केशव तथा कबीर जी एक स्थान पर खड़े थे, सब बैल तथा साथ लाएसेवक जो बनजारों की वेशभूषा में थे, गंगा पार करके चले गए। कुछ ही देर के बाद सिकंदरलोधी राजा ने केशव से कहा आप जाइये आपके बैल तथा साथी जा रहे हैं। जिस ओर बैलतथा बनजारे गए थे, उधर राजा ने देखा तो कोई भी नहीं था। आश्चर्यचकित होकर राजाने पूछा कबीर जी! वे बैल तथा बनजारे इतनी शीघ्र कहाँ चले गए? उसी समय देखते-देखतेकेशव भी परमेश्वर कबीर जी के शरीर में समा गए। अकेले कबीर जी खड़े थे। सब माजरा(रहस्य) समझकर सिकंदर लोधी राजा ने कहा कि कबीर जी! यह सब लीला आपकी हीथी। आप स्वयं परमात्मा हो। शेखतकी के तो तन-मन में ईर्ष्या की आग लग गई, कहनेलगा ऐसे-ऐसे भण्डारे हम सौ कर दें, यह क्या भण्डारा किया है? महौछा किया है।महौछा उस अनुष्ठान को कहते हैं जो किसी गुरू के द्वारा किसी वृद्ध की गति करनेके लिए थोपा जाता है। उसके लिए सब घटिया सामान लगाया जाता है। जग जौनार करनाउस अनुष्ठान को कहते हैं जो विशेष खुशी के अवसर पर किया जाता है, जिसमें अनुष्ठानकरने वाला दिल खोलकर धन खर्च करता है। संत गरीबदास जी ने कहा है कि :-गरीब, कोई कह जग जौनार करी है, कोई कहे महौछा। बड़े बड़ाई किया करें, गाली काढे़ औछा।।सारांश :- कबीर जी ने भक्तों को उदाहरण दिया है कि यदि आप मेरी तरह सच्चे मनसे भक्ति करोगे तथा ईमानदारी से निर्वाह करोगे तो परमात्मा आपकी ऐसे सहायता करताहै। भक्त ही वास्तव में सेठ अर्थात् धनवंता हैं। भक्त के पास दोनों धन हैं, संसार में जोचाहिए वह भी धन भक्त के पास होता है तथा सत्य साधना रूपी धन भी भक्त के पास होता है।एक अन्य करिश्मा जो उस भण्डारे में हुआवह जीमनवार (लंगर) तीन दिन तक चला था। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दोबार भोजन खाता था। कुछ तो तीन-चार बार भी खाते थे क्योंकि प्रत्येक भोजन के पश्चात्दक्षिणा में एक मौहर (10 ग्राम सोना) और एक दौहर (कीमती सूती शॉल) दिया जा रहा था।इस लालच में बार-बार भोजन खाते थे। तीन दिन तक 18 लाख व्यक्ति शौच तथा पेशाब करकेकाशी के चारों ओर ढे़र लगा देते। काशी को सड़ा देते। काशी निवासियों तथा उन 18 लाखअतिथियों तथा एक लाख सेवादार जो सतलोक से आए थे। उस गंद का ढ़ेर लग जाता, श्वांस लेना दूभर हो जाता, परंतु ऐसा महसूस ही नहीं हुआ। सब दिन में दो-तीन बार भोजन खा रहेथे, परंतु शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे, न पेशाब कर रहे थे। इतना स्वादिष्ट भोजन था किपेट भर-भरकर खा रहे थे। पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। हजम भी हो रहा था। किसी रोगीतथा वृद्ध को कोई परेशानी नहीं हो रही थी। उन सबको मध्य के दिन चिंता हुई कि न तो पेटभारी है, भूख भी ठीक लग रही है, कहीं रोगी न हो जाएँ। सतलोक से आए सेवकों को समस्याबताई तो उन्होंने कहा कि यह भोजन ऐसी जड़ी-बूटियां डालकर बनाया है जिनसे यह शरीर मेंही समा जाएगा। हम तो प्रतिदिन यही भोजन अपने लंगर में बनाते हैं, यही खाते हैं। हम कभीशौच नहीं जाते तथा न पेशाब करते, आप निश्चिंत रहो। फिर भी विचार कर रहे थे कि खानाखाया है, परंतु कुछ तो मल निकलना चाहिए। उनको लैट्रिन जाने का दबाव हुआ। सब शहरसे बाहर चल पड़े। टट्टी के लिए एकान्त स्थान खोजकर बैठे तो गुदा से वायु निकली। पेटहल्का हो गया तथा वायु से सुगंध निकली जैसे केवड़े का पानी छिड़का हो। यह सब देखकरसबको सेवादारों की बात पर विश्वास हुआ। तब उनका भय समाप्त हुआ, परंतु फिर भी सबकीआँखों पर अज्ञान की पट्टी बँधी थी। परमेश्वर कबीर जी को परमेश्वर नहीं स्वीकारा।पुराणों में भी प्रकरण आता है कि अयोध्या के राजा ऋषभ देव जी राज त्यागकर जंगलोंमें साधना करते थे। उनका भोजन स्वर्ग से आता था। उनके मल (पाखाने) से सुगंध निकलतीथी। आसपास के क्षेत्रा के व्यक्ति इसको देखकर आश्चर्यचकित होते थे। इसी तरह सतलोक काआहार करने से केवल सुगंध निकलती है, मल नहीं। स्वर्ग तो सतलोक की नकल है जो नकली(क्नचसपबंजम) है।

8thseptember_avataran

संत रामपाल जी महाराज एक ऐसे महान संत जिन्होंने परमार्थ के लिए अनेकों जुल्म सहते हुए सदग्रंथों का वास्तविक ज्ञान और पूर्ण मोक्ष प्राप्ति मंत्...