सात समुन्द्र की मसि करूं, लेखनि करूं बनिराय।
धरती का कागद करूं, गुरु गुण लिखा न जाय
सब पृथ्वी का कागज, सब जंगल की कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते |
गुरु के बिना जीवन अधूरा और दिशाहीन है।
कभी सड़क पर रहने वाले उन बच्चों का जीवन देखिए जिनका कोई गुरू नहीं होता। उन्हें न तो शिक्षा मिलती है ना ही संस्कार। जिस तरह मां बाप के बिना बच्चा अनाथ होता है उसी तरह गुरु के बिना शिष्य।
जैसे सूर्य अंधकार को चीरकर उजियारा कर देता है उसी समान गुरू दीपक की भांति शिष्य के जीवन को ज्ञान रूपी प्रकाश से भर देता है।
धार्मिक और शैक्षणिक महत्व रखने वालेे गुरू पूर्णिमा के दिन का भारतीय शिक्षाविदों और विद्वानों के लिए बहुत महत्व है। यह दिन आषाढ़ (जून-जुलाई) में पूर्णिमा के दिन को मनाया जाता है । इसे त्योहार की तरह भारतीय उप-महाद्वीप में प्राचीन युग से मनाया जाता आ रहा है। आज 16 जुलाई को गुरू पूर्णिमा का यह दिन भारत के अधिकांश राज्यों और पड़ोसी देशों में गुरूओं को समर्पित रहेगा।
कबीर, सात द्वीप नौ खण्ड में, गुरु से बड़ा ना कोय। करता करे ना कर सकै, गुरु करे सो होय।।
सतगुरु भक्ति मुक्ति के दानी, सतगुरु बिना न छूटै खानी। सतगुरु भक्ति कराकर मुक्ति प्रदान करते हैं। वे भक्ति तथा मुक्ति के दाता हैं। सतगुरु के बिना चार खानी (अण्डज, जेरज, उद्भज, श्वेतज, ये चार खानी हैं, इनमें जन्म-मरण होता है।) का यह चक्र कभी नहीं छुटता। (1) अण्डजः- जो प्राणी अण्डे से उत्पन्न होते हैं जैसे पक्षी, इसको अण्डज खानी कहते हैं। (2) जेरजः- जो जेर से उत्पन्न होते हैं, जैसे मानव तथा पशु। (3) उद्भजः- जो स्वयं उत्पन्न होते हैं, जैसे गेहूं में सरसी, ढ़ोरा तथा किसी पदार्थ के खट्टा होने पर उसमें कीड़े उत्पन्न होना, उद्भज खानी है। (4) श्वेतजः- जो पसीने से उत्पन्न होते हैं जैसे मानव शरीर या पशु के शरीर में ढ़ेरे, जूम, चिचड़ आदि ये श्वेतज खानी कहलाती है। इस प्रकार चार खानी से जीव उत्पन्न होते हैं जो कुल 84 लाख प्रकार की योनि अर्थात् शरीर का जीव धारण करते हैं और जन्मते-मरते हैं। यह चार खानी का संकट सतगुरु बिना नहीं मिट (समाप्त हो) सकता। जहां शिक्षक ( गुरु) आपको शिक्षा का महत्व समझा कर पाठ पढ़ाता है तो सदगुरु आपको परमात्म ज्ञान देकर सभी बंधनों से छुड़वाता है जिसे सदगुरू बंदी छोड़ भी कहते हैं। इस समय धरती पर संत रामपाल जी महाराज बंदीछोड़ कबीर जी के अवतार रूप में मौजूद हैं। संत रामपाल जी से नाम दीक्षा लेकर और सतभक्ति करके आप सभी बंधनों से मुक्त हो सकते हैं।
सतगुरु संसार सागर से पार करने वाले कोली (खेवट)हैं। सतगुरु ही हमारी डोली अर्थात् जीवन की गाड़ी (डोली :- जैसे दुल्हन से दुल्हा विवाह कर जिस गाड़ी में बैठाकर ले जाता है, उसे डोली कहते हैं।) को निर्बाध जंगलों से पार करता है। जंगल का अर्थ है सांसारिक व कर्म के संकटों से बचाकर भक्ति कराकर मोक्ष प्राप्ति कराते हैं। सतगुरु हमारे मादर (माता) तथा पिदर (पिता) हैं। सतगुरु भवसागर से पार करने वाले हैं। सतगुरु सुन्दर रूप अपारा, सतगुरु तीन लोक से न्यारा।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें